संधारित्र क्या है? संधारित्र के प्रकार, सिद्धांत ओर उपयोग। संधारित्र की धारिता को प्रभावित करने वाले कारक।

संधारित्र क्या है? संधारित्र का सिद्धांत। संधारित्र की धारिता को प्रभावित करने वाले कारक। संधारित्र के प्रकार।

 

संधारित्र क्या है? संधारित्र का सिद्धांत क्या है? 


“किसी आवेशित चालक के समीप पृथ्वी से संबंधित अन्य चालक को लाने पर आवेशित चालक की विद्युत धारिता बढ़ जाती है। दो चालकों के इस समायोजन को ही संधारित्र कहते हैं। ” यही संधारित्र का सिद्धांत है।

इसे हम इस प्रकार से भी कह सकते है।
             
                                  संधारित्र वह युक्ति है जिसके द्वारा किसी चालक के आकार या आयतन में बिना परिवर्तन किए उसकी विद्युत धारिता बढ़ाई जा सकती है।
संधारित्र में धातु की दो प्लेटें लगी होती है। जिसके बीच के स्थान में कोई कुचालक डाईइलेक्ट्रिक पदार्थ भरा जाता है। संधारित्र की प्लेटों के बीच तभी धारा का प्रवाह होता है जब इसके दोनों प्लेटों के बीच का विभवांतर समय के साथ बदले। यही कारण है कि जब नियत डीसी विभवांतर लगाया जाता है तो स्थाई अवस्था में संधारित्र में कोई धारा नहीं बहती है।

संधारित्र की धारिता को प्रभावित करने वाले कारक।

किसी संधारित्र की धारिता निम्न कारकों पर निर्भर करती है –

(1) प्लेटो के क्षेत्रफल पर – : प्लेटो का क्षेत्रफल बढ़ाने पर संधारित्र की धारिता बढ़ जाती है।

(2) प्लेटों के बीच की दूरी पर -: प्लेटों के बीच की दूरी कम करने पर संधारित्र की धारिता बढ़ जाती है।

(3) प्लेटो के बीच के माध्यम पर – : संधारित्र की प्लेटों के बीच अधिक परावैद्युतांक का माध्यम रखने पर उसकी धारिता बढ़ जाती है।

संधारित्र के प्रकार। 

संधारित्र मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं – 

(1) समांतर प्लेट संधारित्र।
(2) गोलीय संधारित्र।
(3) बेलनाकार संधारित्र।

संधारित्र के उपयोग 

(1) आवेश और ऊर्जा के भंडारण हेतु प्रयोग किया जाता है।
(2) विद्युत फिल्टरो में उपयोग किया जाता है।
(3) पल्स पावर एवं शस्त्र निर्माण में।
(4) इसका सेंटर के रूप में उपयोग किया जाता है।

PUSHKAR SHARMA is a blogger and SEO expert. He has many blogs on which he keeps giving very interesting and informative information every day.

Sharing Is Caring: